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साकेत – गीत
ज्ञान का केन्द्र, कला का धाम, जहाँ कण-कण में बसते राम,
भारती-मन्दिर ललित ललाम, प्रकृति ने जिसे सँवारा है।
यही साकेत हमारा है।
अयोध्या सरयू-तट अभिराम, माधुरीयुक्त अवध की शाम,
कल्पाना ‘राघवदास’ ‘नरेंद्र’, धरा पर स्वर्ग-सितारा है।
यही साकेत हमारा है।
पुण्य का पाठ, स्नेह-सम्बन्ध, कर्म के कुसुम, धर्म की गंध,
आर्य-संस्कृति का उच्चादर्श, साधना का गुरूद्वारा है।
यही साकेत हमारा है।
त्याग-तप-मण्डित,उर-अनुराग,अमर-अभिलाषा, विमल-विराग,
दीप से दीप जले अविराम, लक्ष्य-गुरू गौरव न्यारा है।
यही साकेत हमारा है।